नई दिल्ली। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने घूसखोरी के ख़िलाफ़ हेल्पलाइन नंबर जारी कर दिया है। अब दिल्लीवालों के पास सरकारी कार्यालयों में...
नई दिल्ली। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने घूसखोरी के ख़िलाफ़ हेल्पलाइन नंबर जारी कर दिया है। अब दिल्लीवालों के पास सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ शिकायत करने के लिए एक हेल्पलाइन नंबर 011-27357169 है। अरविंद केजरीवाल ने जब 28 दिसंबर को मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली थी तभी उन्होंने दिल्लीवालों से इस हेल्पलाइन का वादा किया था।
बुधवार शाम को इस नंबर को लॉन्च करते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री ने कहा कि ये हेल्पलाइन नंबर है, यहां आप शिकायत नहीं कर सकते, बल्कि मदद मांग सकते हैं। ये नंबर सुबह 8 बजे से रात 10 बजे तक काम करेगा।
केजरीवाल के मुताबिक कॉल करनेवाले से पूरी जानकारी ली जाएगी और शिकायत करनेवाले को समझाया जाएगा कि वो कैसे घूस मांगनेवाले कर्मचारी या अधिकारी का स्टिंग कर सकता है और स्टिंग हो जाने के बाद शिकायतकर्ता फिर से हेल्पलाइन नंबर पर फोन कर के बताएगा जिसके आधार पर कार्रवाई की जाएगी और स्टिंग ऑपरेशन को बतौर सबूत कोर्ट में पेश किया जाएगा।
हेल्पलाइन को लाने में देरी होने पर उन्होंने कहा कि हमें बैकएंड तैयार करने में टाइम लग गया क्योंकि हम एंटी करप्शन ब्यूरो को मज़बूत कर रहे थे।
केजरीवाल का दावा है कि इस ऐलान के बाद अब हर दिल्लीवासी एंटिकरप्शन इंस्पेक्टर बन गया है और वो अब उसे अधिकार है कि वो रिश्वत मांगनेवाले अफसर का स्टिंग ऑपरेशन कर सकता है, उसकी वीडियो रिकॉर्डिंग कर सकता है।
सवालों में सरकार
सीएम का मानना है कि इस मुहिम से अधिकारियों में खौफ पैदा होगा लेकिन इस फ़ैसले पर कई सवाल भी उठ रहे हैं, मसलन
क्या सरकार लोगों की शिकायत को शिकायत न मानकर अपनी ज़िम्मेदारी पल्ला झाड़ रही है?
लोगों को हिम्मत देने की बजाय उन्हें स्टिंग ऑपरेशन जैसे ख़तरनाक काम में कैसे लगा सकते हैं?
आम लोग स्टिंग ऑपरेशन करना नहीं जानते, उन्हें ट्रेनिंग देने का ज़िम्मा सरकार क्यों नहीं लेती?
सरकार अपनी मशीनरी से ख़ुद उस अधिकारी का स्टिंग ऑपरेशन क्यों नहीं करती?
स्टिंग के लिए जो महंगी मशीनरी चाहिए, वो आम जनता कहां से लाएगी?
क्या मुख्यमंत्री सुरक्षा एजेंसी का काम आम लोगों पर नहीं डाल रहे?
क्या दिल्ली की जनता पुलिस की तरह या रिपोर्टरों की तरह काम करने को तैयार है?
क्या स्टिंग ऑपरेशन के बाद कार्रवाई से अच्छा नहीं होता कि अधिकारियों को रंगे हाथों पकड़ा जाता?