BLP cannot take the risk of ignoring Dalits, according to statistics, 10 Dalit women are raped every day- Rajdeep Sardesai
नई दिल्ली/ राजदीप सरदेसाई का कॉलम: हाथरस के भूलगढ़ी गांव से काफी पहले दादरी का बिसाड़ा गांव चर्चा में था। वहां सितंबर 2015 में 50 साल के मोहम्मद अखलाक को बीफ रखने के आरोप में पीट-पीटकर मार डाला गया था। सभी आरोपी ऊंची जाति के थे जो जमानत पर रिहा हो गए थे।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 2019 में चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत इसी गांव से की थी। तब एक अन्य आरोपी पहली पंक्ति में बैठा था। अपने भाषण में योगी ने अखलाक मामले का जिक्र करते हुए कहा था, ‘समाजवादी पार्टी की सरकार ने कितनी बेशर्मी से मामला दबाने की कोशिश की थी। जबकि हमने एक झटके में सभी अवैध बूचड़खाने बंद करा दिए।’ भीड़ ने जमकर तालियां बजाईं।
भाजपा ने ग्रेटर नोएडा लोकसभा सीट जीत ली, इसी के अंतर्गत बिसाड़ा भी आता है। बिसाड़ा की ही तरह भूलगढ़ी मामले में भी पश्चाताप की भावना नदारद है। पीड़ित किशोरी के परिवार के साथ सहानुभूति जताने की बजाय मुख्यमंत्री कार्यालय दावा कर रहा है कि राज्य में जातीय और सांप्रदायिक दंगे भड़काने की साजिश थी।
हाथरस के पूर्व भाजपा विधायक ने तो किशोरी पर हमले के आरोपी के पक्ष में ऊंची जाति के ग्रामीणों की पंचायत तक बुला डाली। पीड़ित लड़की के चरित्र हनन वाला सोशल मीडिया अभियान भी शुरू हो चुका है। इस शोरगुल में पीड़ित लड़की का गैंगरेप का आरोप लगाने वाला मृत्युपूर्व दिया गया बयान कहीं खो गया है।
क्या वास्तव में यह मायने रखता है कि देरी से की गई जांच में हाथरस पीड़ित के साथ दुष्कर्म की पुष्टि हुई या नहीं, जबकि असली मुद्दा यह है कि एक लड़की को बेदर्दी से मार डाला गया और शव का अंतिम संस्कार उसके परिवार को बंद कर जल्दबाजी में कर दिया गया?
बिसाड़ा और भूलगढ़ी दोनों ही जगहों पर योगी सरकार ने असंवेदनशीलता का परिचय देते हुए सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल मामले को दबाने में किया। जबकि यहां पर एक खास अंतर है। अखलाक मुस्लिम था और उसे हाशिये पर पहुंचाना बहुसंख्यवादी एजेंडे का हिस्सा था। यही वजह है कि योगी सरकार अखलाक के हत्यारों के समर्थन में खुलकर आ सकती थी।
सच यह है कि योगी सरकार के लिए मुस्लिम जिंदगियां मायने नहीं रखती। इसीलिए अखलाक के हत्यारे बच जाएंगे। इसीलिए योगी के खिलाफ आवाज उठाने वाले गोरखपुर के डॉ. कफील खान को कई महीने दिखावटी आरोपों में जेल में बिताने पड़े। यही वजह थी कि नागरिकता संशोधन कानून का विरोध कर रहे लोगों को गंभीर आरोपों में जेल में डाल दिया गया। लेकिन इसके उलट दलित जिंदगियां मायने रखती हैं।
दलितों को ऊंची जाति के प्रभुत्व वाले समाज में संघर्ष करना पड़ता है। इनमें से अनेक आज भी पहले से अपनाए गए जातिगत कामों में लगे हैं। इसके बावजूद उनमें बढ़ती राजनीतिक जागरूकता भी एक हकीकत है। उप्र में भाजपा की जीत में दलित फैक्टर की अहम भूमिका है। सीएसडीएस के 2019 के चुनाव के अध्ययन से पता चलता है कि पांच सालों में भाजपा का दलित वोटों का हिस्सा 10% बढ़कर 34% हो गया है।
पार्टी का उत्तर भारत की आरक्षित सीटों पर वर्चस्व है। मायावती सिर्फ जाटव वोटों तक ही सीमित रह गईं, वहीं गैर जाटव दलित वोटरों ने बड़ी संख्या में भाजपा के पक्ष में वोट दिए। इसमें वाल्मीकि समाज की अच्छी संख्या है और इसी समाज से भूलगढ़ी की पीड़ित भी आती है। इसलिए आप अखलाक के हत्यारों के साथ तो खड़े हो सकते हैं, लेकिन भूलगढ़ी की लड़की के हत्यारों के साथ खड़ा होना मुश्किल होगा।
सभी आरोपी ठाकुर हैं और योगी सरकार पर इस समुदाय को ही संरक्षण देने का आरोप है। इसीलिए मुख्यमंत्री के कई विरोधी उनके असली नाम अजय सिंह बिष्ट का जिक्र करने लगे हैं। यूपी में ठाकुरवाद का ठप्पा राजनीतिक आत्महत्या जैसा है। यहां की जटिल जातीय व्यवस्था के कारण ही भाजपा के ओबीसी चेहरे उमा भारती ने हाथरस मामले से निपटने को लेकर योगी सरकार की आलोचना की है।
यह इस बात का परिचायक है कि भाजपा की ऊंची जाति की मनुवादी छवि ने ही पूर्व में मायावती और मुलायम का आधार बनाने में मदद की। इसीलिए अगर योगी दलित परिवार को न्याय नहीं दिलाते हैं तो समझो वे आग से खेल रहे हैं। जिस रिक्तता को कभी मायावती व बसपा ने भरा था, आज भीम आर्मी के चंद्रशेखर आजाद जैसे नेता दलित राजनीतिक उत्थान के चैंपियन बन सकते हैं।
प्रियंका गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस के यूपी में खुद को पुनर्जीवित करने की कोशिशें भाजपा की निश्चिन्तता हिला सकती हैं। उप्र विधानसभा चुनाव एक साल दूर हैं और भाजपा सबसे मजबूत चुनावी मशीन के रूप में मैदान में है। लेकिन अच्छे से तेल-पानी की गई मशीनों भी सावधानी से चलानी होती है। न कि गलती न मानने वाले शासन की अगुवाई करके, जो डर व विभाजन के शासन में विश्वास करता हो।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक हर दिन 10 दलित महिलाओं (रोज कुल 88 महिलाओं) के साथ दुष्कर्म होता है। मुझे आश्चर्य होता है कि क्या झारखंड या छत्तीसगढ़ के किसी दूरस्थ गांव में किसी लड़की से दुष्कर्म को भी हाथरस जैसी विजिबिलीटी मिलती? (ये लेखक के अपने विचार हैं)