Union Minister of Science, Technology and Earth Sciences Dr Harsh Vardhan inaugurated the construction of Borehole Geophysics Research Laboratory (BGRL) at Hazarmachi, Karad, Maharashtra.
मुंबई। केंद्रीय विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पृथ्वी विज्ञान मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कराड के हजारमाची में बोरहोल जियोफिजिक्स रिसर्च लेब्रोट्रेरी (बीजीआरएल) के निर्माण के लिए होने वाले भूमि पूजन का नेतृत्व किया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि सरकार वैज्ञानिक अनुसंधानों के जरिये प्राकृतिक आपदाओं की वजह से लोगों को होने वाली समस्याओं का हल ढूंढना चाहती है।
भारत सरकार का पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय भूकंपीय समस्याओं की वजह से सामाजिक दिक्कतों की चुनौतियों को खत्म करने के लिए कराड में बोरहोल जियोफिजिक्स रिसर्च लेब्रोट्रेरी (बीजीआरएल) की स्थापना कर रहा है। इसके जरिये ड्रिलिंग इनवेस्टिगेशन को अंजाम दिया जाएगा। महाराष्ट्र के भूकंपीय क्षेत्र कोयना के इंटर-प्लेट भूकंपीय इलाके में गहराई तक वैज्ञानिक ड्रिलिंग की मंत्रालय की अवधारणा के तहत बीजीआरएल की स्थापना का फैसला किया गया है ताकि इलाके में भूकंप से जुड़े अनुसंधानों और मॉडलों की दिशा में काम किया जा सके।
शिवाजी सागर लेक को 1962 को ले लेने के बाद कोयना क्षेत्र में जलाशय की वजह से लगातार भूकंप आ रहे है। 1967 में कोयना क्षेत्र में 6.3 तीव्रता का भूकंप आया था जो दुनिया में सबसे ज्यादा तीव्रता का भूकंप था। अब तक 5 या इससे ज्यादा तीव्रता के 22 भूकंप आ चुके हैं। चार और इससे ज्यादा तीव्रता के 200 से ज्यादा भूकंप आ चुके हैं। क्षेत्र में कम तीव्रता के हजारों भूकंप आ चुके हैं। सभी भूकंप 30 गुना 20 किलोमीटर के दायरे में सीमित रहे हैं। लगातार भूकंपीय गतिविधियों और कोयला के वार्षिक लोडिंग और अनलोडिंग चक्र और निकटवर्ती वार्ना जलाशय में मजबूत संबंध है। हालांकि जलाशयों की ओर से भूकंप पैदा होने की परिघटना को समझने के लिए बनाए गए मॉडल से यह स्पष्ट नहीं हो सका है।
इस कार्यक्रम के तहत कोयना में भूकंप आने की क्रियाविधि को समझने के लिए एक इस कार्यक्रम के तहत एक खास नजरिया अपनाया जा रहा है। इसके लिए भूकंपीय क्षेत्र में गहरे तक खुदाई जाएगी और गहराई में एक बोरहोल वेधशाला स्थापित की जाएगी। इस तरह प्रत्यक्ष अवलोकन से इन भूकंपों की क्रिया विधि का मॉडल तैयार करने के लिए महत्वपूर्ण और नई जानकारी मिल सकेगी।
बोरहोल रिसर्च जियोफिजिक्स रिसर्च लेब्रोट्रेरी (बीजीआरएल) के तहत दफ्तर के लिए भवन, आधुनिक प्रयोगशाला और आधुनिक रिपोजटरी विकसित किए जा रहे हैं । यह भवन कराड में हजारमाची के कैंपस में बनेगा। महाराष्ट्र की सरकार ने इसके लिए जरूरी भूमि मुहैया कराई है। बोरहोल रिसर्च जियोफिजिक्स रिसर्च लेब्रोट्रेरी (बीजीआरएल) की स्थापना का उद्देश्य जियो-फिजिकल, जियोलॉजिकल और जियोटेक्निकल सुविधाओं के लिए एक विश्वस्तरीय संस्थान बनाना है। ऐसा संस्थान जहां भूकंप से जुड़े शोध हो सकेंगे।
भूमि पूजन समारोह में सतारा के सांसद छत्रपति उदयनराजे भोसले, दक्षिण कराड के विधायक पृथ्वीराज चह्वाण और भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव डॉ. एम राजीवन ने भी हिस्सा लिया
वेधछिद्र भूभौतिकी अनुसंधान प्रयोगशाला, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, भारत सरकार के निर्माण कार्य का भूमि पूजन समारोह 1 फरवरी 2016 को हजारमाची, कराड मे किया गया । विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पृथ्वी विज्ञान के केंद्रीय मंत्री माननीय डॉ. हर्ष वर्धन ने इस अवसर की शोभा बढ़ाई । उदयनराजे भोसले, सांसद, पृथ्वीराज चव्हाण, विधायक दक्षिण कराड, बालासाहेब पाटिल, विधायक उत्तर कराड, तथा डॉ. एम. राजीवन, सचिव भारत सरकार, पृथ्वी विज्ञान मंत्रायलय ने भी इस कार्यक्रम मे हिस्सा लिया ।
वेधछिद्र भूभौतिकी अनुसंधान प्रयोगशाला , पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, भारत सरकार दवारा वैज्ञानिक ड्रिलिंग जाँच के माध्यम से सामाजिक प्रासंगिकता के चुनौतीपूर्ण भूकंप समस्याओ के समाधान हेतु स्थापित किया जा रहा है । मंत्रालय के कार्यक्रम “Scientific deep drilling in the Koyna intraplate seismic zone’ महाराष्ट्र के अंर्तगत बी. जी. आर. एल की अवधारणा रखी गयी थी । वैज्ञानिक ड्रिलिंग और देश में इस तरह की सुविधा और विशेषज्ञता की कमी के बढ़ते महत्व को समझते हुए बी. जी. आर. एल, वैज्ञानिक ड्रिलिंग, गहरी बोरहोल, भूभौतिकी, भूगर्भीय जाँच और भूकंप अनुसंधान के लिए समर्पित मॉडलिंग के सभी पहलुओं में स्वदेशी क्षमता और विशेषज्ञता विकसित करने के लिए शुरू किया गया है ।
स्थायी बुनियादी ढांचे के अंर्तगत कार्यालय भवन, मुख्य प्रयोगशालायें और अत्याधुनिक कोर संग्राहलय, हज़ारमाची, कराड मे अपने परिसर में विकास के अंर्तगत है । महाराष्ट्र सरकार ने इस परियोजना हेतु आवश्यक भूमि उपलब्ध कराई है । बी. जी. आर. एल का लक्ष्य एक अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त भूकंप अनुसंधान से संवंधित आति विशिष्ट भूभौतिकीय, भूगर्भीय और भू-तकनीकी सुविधाओँ की एक संस्था के रूप में उभरना है।
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