नई दिल्ली। खैबर पख्तुनवा, पाकिस्तान का वही इलाका है, जहां 3 साल पहले केंद्रीय जेल पर हमला किया गया गया और 400 क़ैदी फरार हो गये। यह वही...
नई दिल्ली। खैबर पख्तुनवा, पाकिस्तान का वही इलाका है, जहां 3 साल पहले केंद्रीय जेल पर हमला किया गया गया और 400 क़ैदी फरार हो गये। यह वही इलाका है जिसे पाकिस्तान का गन मार्केट कहते हैं। यह वो इलाका है जहां पाकिस्तानी की एलीट खैबर कमांडो फोर्स रहती है, जिसमें महिला कमांडो भी शामिल हैं। खैबर का यह वही इलाका है जिसके 33 मील लंबे दर्रे के रास्ते से 2000 सालों तक यूनानियों, हूणों और शकों के बाद अरबों, तुर्कों, पठानों, मुगलों के कबीले हमलावर बनकर भारत में आते रहे।
पाकिस्तान में खैबर दर्रा में ऐसा लगता है जैसे यहां पाकिस्तानी हुकूमत की एक नहीं चलती। यहां की गलियों में खुलेआम हथियारों का बाज़ार लगता है। अधिकतर हथियार मेड इन खैबर ही होते हैं जहां बच्चे भी बंदूकों और गोलियों के बाज़ार में अपनी आज़माइश दिखाते हैं। खैबर दर्रा कभी अपने तीर-कमान के खेल के लिए जाना जाता था लेकिन आज ये हथियारों के बाज़ार और आतंकियों के इलाके के तौर पर जाना जाता है।
खैबर दर्रा उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान की सीमा और अफगानिस्तान के काबुलिस्तान मैदान के बीच हिंदुकुश के सफेद कोह पर्वत श्रृंखला में ये दर्रा है। पेशावर से काबुल तक इस दर्रे से होकर अब एक सड़क बन गई है। यह सड़क चट्टानी ऊसर मैदान से होती हुई जमरूद से, जो अंग्रेजी सेना की छावनी थी और जहाँ अब पाकिस्तानी सेना रहती है, तीन मील आगे शादीबगियार के पास पहाड़ों में प्रवेश करती है और यहीं से खैबर दर्रा शुरू होता है।
यहां से अफगानिस्तान का मैदानी भाग दिखाई देता है और तालिबानी आतंकियों के लिए पाकिस्तान में दाखिल होने के लिए यही से रास्ता मिलता है। सामरिक दृष्टि में संसार भर में यह दर्रा सबसे अधिक महत्व का समझा जाता रहा है। यहां की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि अगर लोकल का साथ ना मिले तो भी इस दर्रे से निकलकर पाकिस्तान में नहीं आ सकता है और यहीं पाक आर्मी का रोल सामने आता है। जो आतंकियों को पाक धरती पर कदम रखने की छूट देती है।
19 महीने से पाकिस्तान उत्तरी वज़ीरिस्तान में ऑपरेशन जर्ब-ए-अज्ब चला रही है। आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन में अब 190 अरब खर्च हुए हैं। इस ऑपरेशन की वजह से 10 लाख लोगों को घर छोड़ना पड़ा है।ऑपरेशन में अब तक 3400 से ज्यादा आतंकी मारे गए, वहीं पाकिस्तान आर्मी के 5000 अफसर और जवान शहीद हुए। आर्मी ने इस इलाके में ऐसा ही ऑपरेशन 2009 में भी चलाया था, कुछ वक्त बाद तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान यहां फिर मजबूत हो गया। इसी ऑपरेशन के खिलाफ दिसंबर में स्कूल पर हमला किया गया जिसमें 132 बच्चों की जान चली गई। हमले के बाद ही पेशावर में स्कूलों की हिफाजत के लिए 11 हजार सैनिकों की टुकड़ी लगानी पड़ी। इतनी बड़ी तैनाती के बावजूद पेशावर में बाचा खान यूनिवर्सिटी पर हमला हुआ।
दरअसल पाकिस्तानी आर्मी को पता है कि जब तक उत्तरी वज़ीरिस्तान में आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन चलता रहेगा। तब तक उसे अरबों की रकम मिलती रहेगी। वहीं पाक सरकार को भी पता है कि जिस ऑपरेशन में नाटो उसकी मदद कर रहा है उसमें विदेशी फंडिंग आती रहेगी और इसी का असर है कि तहरीक-ए-तालिबान को समय-समय पर छूट दे दी जाती है। और इस तरह का बड़ा हमला खैबर से लेकर शाकाई वैली तक ऑपरेशन जर्ब-ए-अज्ब को ज़िंदा रखेगी। और पाकिस्तान विदेशी फंडिंग पर अपनी सामरिक शक्ति को बढ़ाता रहेगा।