नई दिल्ली। सुभाषचंद्र बोस से जुड़ी सीक्रेट फाइलें शनिवार को पब्लिक कर दी गई। होम मिनिस्ट्री की टॉप सीक्रेट रही 1976 की फाइल ‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस : प्रपोजल ऑफ एम्बेसी’ भी सामने आई। इसमें आईबी से जुड़ी नोटिंग्स हैं। इसके 205 पन्नों में कहा गया है कि नेताजी को रूस ब्रिटेन की इंटेलिजेंस एजेंसी एमआई-6 का एजेंट मानता था।
फाइलों के मुताबिक 1994 में जब एशिया और अफ्रीका अखबारों में ये ख़बर निकली की नेता जी ब्रिटिश इंटेलिजेंस MI-6 के एजेंट थे तो इस पर सरकार में कई दौर की बैठकें हुईं। 20 जुलाई 1994 को राष्ट्रपति भवन में हुई बैठक में जो बयान जारी किया उसके मुताबिक नेता जी पर जिन आर्टिकल्स में आरोप लगे हैं कि वो ब्रिटिश इंटेलिजेंस MI-6 की गुप्त रूप से मदद कर रहे थे, आर्टिकल में उनको लेकर कुछ भी अपमानजनक नहीं है।
यानी सरकार उन आर्टिकल्स को तवज्जो तो दे रही थी लेकिन जिन आर्टिकलों में नेता जी को ब्रिटिश इंटेलिजेंस का एजेंट बताया गया उन्हें लेकर फिक्रमंद नहीं थी और शायद जानबूझकर डाउन प्ले कर रही थी ताकि ये मुद्दा आनेवाले वक़्त में मीडिया में ना उछले। इसी बैठक में नेता जी की अस्थियों को लेकर भी कैबिनेट सचिव ने लिखा है।
“जहां तक नेता जी की अस्थियों को रेंकोजी मंदिर, जापान से वापस लाने सवाल है, इस पर इस वक़्त में फैसला लेने का कोई फायदा नहीं है क्योंकि नेताजी की जन्म शती 1997 में है। इसलिए इस मसले पर 1996-97 में ही कोई फैसला लिया जा सकता है और तब तक के लिए यथास्थिति बनाये रखना चाहिए। मंदिर प्रशासन से अस्थियों को रखने को लेकर बात करनी चाहिए और अगर अस्थियों को रखने के लिए ज़्यादा पैसे देने पड़े तो देना चाहिए।” कैबिनेट सचिव, भारत सरकार, 20 जुलाई 1994
इस नोट में 1996-97 में नेता जी की राख रेंकोजी मंदिर से लाने के लिए बात लिखी है लेकिन दिसंबर 2001 में प्रधानमंत्री अटब बिहार वाजपेयी इस मंदिर में गये और नेता जी की अस्थियों पर मत्था टेका था लेकिन आज तक नेता जी सुभाष चंद्र बोस की अस्थियां भारत वापस नहीं आ सकी हैं। इन फाइल्स में जवाहर लाल नेहरू की वो चिट्ठी भी दी गई है जिसके मुताबिक 27 दिसंबर 1945 को नेहरू ने इंग्लैंड के पीएम क्लीमेंट एटली को चिट्ठी लिखी जिसमें बोस को वॉर क्रिमिनल बताया गया।
"मुझे अपने भरोसेमंद सूत्र से पता चला है कि सुभाष चंद्र बोस जो आपके वॉर क्रिमिनल हैं, उन्हें स्टालिन ने रूसी सीमा में दाखिल होने की मंजूरी दे दी है।यह रूस द्वारा किया गया धोखा है, क्योंकि रूस ब्रिटिश-अमेरिकन अलायन्स का समर्थक है। रूस को ऐसा नहीं करना चाहिए था। आप इस पर ध्यान दें और जो सही लगे वो एक्शन लें।" – जवाहर लाल नेहरू
नेहरू को लेकर एक और खुलासा फाइलों से देखने को मिलता है। खुलासा ये है कि नेहरू बोस के परिवार की जासूसी कराते रहे हैं। और ये भी बात सामने आई है कि लाल बहादुर शास्त्री के समय तक सरकार ये नहीं तय कर पा रही थी कि सुभाष चंद्र बोस की मौत हो चुकी है या नहीं।
मौत के राज़ को लेकर जो जांच समिति बनाई गई थी। उसमें से खोसला समिति के पास इंटरनेशनल बायोग्राफिक प्रेस सर्विस की रिपोर्ट भी आई जिसमें दावा किया गया कि नेता जी 18 अगस्त 1945 के बाद भी ज़िंदा थे और जापान से रूस चले गये थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि -
“किसी ने भी उनको जलते हुए नहीं देखा। ढेरों अनुभवी लोग मानते हैं कि जापान बहुत सारे जाने-माने लोगों के समपर्ण के वक़्त में ये बात फैलाई है कि वो प्लेन क्रैश में मर गये। 50 साल के सुभाष चंद्र बोस काफी स्वस्थ थे, दिमागी रूप से काफी मज़बूत थे और दूरदृष्टा नेता थे।... 1945 में जब एलायड पावर्स की जीत पर पूरे चीन में हंगामा बरपा हुआ था, उनके पास मौका था कि वो आसानी से सोवियत सीमा में सोने का सौदा कर के प्रवेश करते और एक विशेष विमान से मॉस्को जाकर वहां भूमिगत हो जाते।” -- इंटरनेशनल बायोग्राफिक प्रेस सर्विस, 28 अक्टूबर 1949
ये अमूमन वही बात है जो खोसला कमिशन के सामने कर्नल टाडा ने कही थी, जिससे शक किया जा सकता है कि नेता जी बाद में भी ज़िंदा थे लेकिन एक फाइल के मुताबिक ऑस्ट्रिया के वियना में नेता जी की पत्नी फ्रॉ एमिली शेंकल को भारत सरकार ने आर्थिक मदद भेजी थी। 1952 में भारत सरकार ने नेता जी की पत्नी को मदद भेजने के लिए ऑस्ट्रिया के इंपिरियल बैंक में आरबीआई के ज़रिये भेजा गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इसके लिए खुद सिफारिश की थी और विदेश मंत्रालय से कहा था कि वित्त मंत्रालय बात कर के 100 पाउंड (उस वक़्त 1338 रुपये) की मदद भेजी जाये।
इस दौरान प्रधानमंत्री नेहरू और उनकी सरकार में अधिकारियों से सुभाष चंद्र बोस की पत्नी एमिली लगातार संपर्क में रहीं। लगातार चिट्ठियों का आदान-प्रदान चलता रहा, एक चिट्ठी में एमिली ने भारत सरकार से मदद लेने से इनकार भी किया लेकिन उनकी बेटी अनिता शेंकल बोस के लिए कांग्रेस पार्टी ने एक फंड बनाया जिसमें प्रधानमंत्री नेहरू और तब के पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बीसी रॉय ट्रस्टी थे। AICC ने इसमें 2 लाख रुपये का फंड रखा और उससे मिलने वाले ब्याज से अनिता बोस को हर 6 महीने पर 3000 रुपयों की मदद भेजती रही। इस फंड को लेकर नियम थे कि 21 साल की उम्र तक अनिता बोस को मदद दी जाती रहेगी, और यदि इस दौरान उकी मृत्यु हो जाती है तो एमिली शैंकल बोस को ये मदद जाएगी और अगर एमिली की भी मौत हो जाती है भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस उस रकम को रख लेगी। 1964 में अनिता बोस ने शादी कर ली तो कांग्रेस ने 1965 में इसकी जानकारी होते ही 6000 रुपये सालाना की यह मदद देनी बंद कर दी।
फाइलों में अनिता बोस और जवाहर लाल नेहरू के बीच जो बातें चिट्ठियों के ज़रिए हुई हैं वो भी सामने रखी गई हैं, चिट्ठियों में सामने आया है कि अनिता बोस 1959-1960 में भारत आने की योजना बना रही थीं और भारत में तीन महीने का उनका प्रवास होने वाला था। हालांकि बाद में नेहरू को वियना दूतावास से खबर मिली की वो दिसंबर 1960 तक ही भारत आ सकती हैं। हालांकि इस दौरान जवाहर लाल नेहरू ने अनिता से दिल्ली आकर उनके घर पर रुकने की इच्छा जताई थी। पीटीआई ने एक ख़बर छापी जिसमें अनिता की फोटो लगी है जब वो दिल्ली आई थीं। अनिता के कोलकाता पहुंचने पर वियना में उनकी मां और बोस की पत्नी एमिलि को खत लिखकर उनके सुरक्षित पहुंचने की सूचना भी दी गई।
एक फाइल में नेता जी का डेथ सर्टिफिकेट दिया गया है जिसमें उनका नाम बदलकर रखा गया है। 1956 में जारी हुए इस मृत्यु प्रमाण पत्र में नेता जी का नाम इचिरो ओकुरा दिया गया। जबकि नेता जी के मरने की तारीथ 19 अगस्त 1945 दर्ज की गई है जबकि आज भी माना जाता है कि उनकी मृत्यु 18 अगस्त 1945 को हुई थी। इसमें नेता जी के मरने की वजह हार्ट अटैक को बताया गया है।
नाम को लेकर झूठ बोलने को लेकर जापान सरकार ने साफ किया है कि ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि नेता जी काफी लोकप्रिय थे और उनकी मृत्यु की ख़बर को छिपाने का फैसला किया गया।