तो यहीं पर मरें ये तस्वीरें दिसंबर महीने के उन्हीं चित्रों की पुनरावृत्ति प्रतीत होती हैं जब पी7 के कर्मचारी धरने पर बैठे थे। आज फि...
पिछली तारीख पर 12 फरवरी को शरद दत्त और उदय सिन्हा ने एक समझौते पर साइन करते हुए सहमत हुए थे कि कंपनी 18 फरवरी तक ग्रेच्यूटी और पीएफ का पैसा दे देगी, लेकिन इस बारे में भी 18 फरवरी तक कुछ नहीं किया और जब 18 फरवरी को सिटी मजिस्ट्रेट के दफ़्तर में पहुंचना था तो केसर सिंह ने चाल चली और इनकी जगह अपने वकील को भेजकर ये कहलवाया कि केसर सिंह और विधु शेखर उस समझौते को नहीं मानते जिस पर उदय सिन्हा और शरद दत्त ने साइन किया। अब पी7 में इसी को लेकर धरना शुरू हो गया है जो अनवरत चलनेवाला है जब तक कि हर कर्मचारी का पैसा नहीं मिल जाता। इस बारे में कर्मचारियों ने पहले ही प्रबंधन को आगाह कर दिया था साथ ही एएलसी और सिटी मजिस्ट्रेट को भी बता दिया था। पी7 त्रासदी का घर हो गया है। मीडिया का यह वो हाउस है जिसने क्या-क्या नहीं देख लिया वो भी सिर्फ केसर सिंह की वजह से। एक चैनल जो नवोदित चैनलों में काफ़ी अच्छा बन पड़ा था, लोगों के ज़हन में उतर चुका था, कर्मचारियों और पत्रकारों के लिए अच्छा वातावरण देता था उसे केसर सिंह के घोटालों और उसकी बदनियती ने दूषित कर दिया, बर्बाद कर दिया। आज भी केसर सिंह अपनी भद्द नहीं पिटवाता और आसानी से सबको पैसे देकर सम्मानपूर्वक चैनल बंद कर सकता था या फिर दोबारा से शुरू कर सकता था या फिर किसी को भी बेच सकता था लेकिन केसर सिंह ने अपनी भद्द पिटवा ली, पी7 की इज्जत गिरा दी।
मीडिया के इतिहास में दुनिया में जो नहीं हुआ वो पी7 में हो गया। चैनल बंद होने की ख़बर ब्रेकिंग बनकर ख़ुद पी7 के स्क्रीन पर चली, डायरेक्टर भागने की फिराक में थे तो सभी कर्मचारी एकजुट हो गये और उनको उनके दफ़्तर से ही नहीं निकलने दिया और प्रशासनिक अधिकारियों को बुलाकर उनके सामने समझौता कराकर ही उन्हें छोड़ा। केसर सिंह चाहते तो ये सब नहीं होता और आराम-आराम से सबका पैसा देकर सबको इज्ज़त के साथ विदा किया जा सकता था। लेकिन इन्हें तो अपनी ही लेनी थी, सो आज भी यह लोग यही कर रहे हैं छुट्टृछुट्टा पैसा लोगों को दे दिया और कुछ-कुछ बातों पर ऐसे अड़ रहे हैं जैसे इन्हीं के कहने पर सब कुछ होगा। मैनेजमेंट को एक बार फिर कर्मचारियों का डंडा चाहिए था और वो डंडा लेकर कर्मचारी पी7 न्यूज़ के दफ़्तर में डटे हुए हैं