How much is darker truth of Modi's Vibrant Gujarat
वापी। मोदी के वाइब्रेंट गुजरात की हर तरफ चर्चा है। मोदी खुद गुजरात के विकास की बातें कर विपक्षी पार्टियों को चैलेंज देते फिरते हैं। लेकिन आउटलुक इंडिया में छपी एक खबर के मुताबिक मोदी के वाइब्रेंट गुजरात का सच काला है। दरअस्ल ये रिपोर्ट वापी औद्योगिक क्षेत्र और उसके आस-पास के इलाकों पर तैयार की गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के इस गोल्डन कॉरिडोर की आहट आप यहां फैली दुर्गंध से ही पा सकते हैं।
वायु प्रदूषण ने जीना किया मुहाल
राष्ट्रीय राजमार्ग 8 पर बसे वापी की पहचान 1048 औद्योगिक इकाईयों की धुआं उगलती चिमनियां हैं। हालात ये हैं कि पूरा शहर स्याह धुएं से हर वक्त घिरा रहता है। प्रदूषण का आलम ये है कि ये देश के सबसे अधिक प्रदूषित शहरों की सूची में एक बार फिर शामिल हो गया है।
नई परियोजनाओं पर प्रतिबंध
रसायन और उर्वरक कारखानों के बोलबाले के चलते बढ़ते प्रदूषण की वजह से केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय ने इसे गंभीर रुप से प्रदूषित स्थानों की सूची में शामिल किया है। और शहर में किसी नई परियोजना पर रोक लगा दी गई है।
चमक के पीछे कैंसर की भयानक सच्चाई
चमक के पीछे कैंसर की भयानक सच्चाई
रिपोर्ट के मुताबिक वापी शहर में कुछ इलाके की चमक इसे विश्व मानचित्र पर चमकाने की कवायद लगती है
लेकिन जैसी ही आप औद्योगिक क्षेत्र में आगे बढ़ते जाएंगे ये चमकीला सड़कें गड्ढों में तब्दील हो जाती हैं। गरीबों के इस इलाके की हवा तक जहरीली हो चुकी है। सालों से बीमारियों से जूझ रहे इस इलाके में आए दिन किसी न किसी की मौत होते रहती है। गावों के प्रभावी लोग बताते हैं कि हर दूसरे घर में एक कैंसर का मरीज है जो अपनी मौत का इंतज़ार कर रहा है। कई लोग चर्म रोग से पीड़ित हैं लेकिन सामाजिक वजहों से इसकी चर्चा तक नहीं करते। टीबी और अस्थमा जैसी बीमारियां तो यहां आम हैं। ऐसा नहीं है कि हमेशा से यहां ऐसी ही भयावहता थी लोग कहते हैं कि पिछले 10 सालों से ये बीमारियों लोगों के घर-घर में घुस चुकी हैं।
ज़हरीला पानी निगल गया मछुआरों का गांव
दरअस्ल वापी परंपरागत तौर पर मछुआरों का गांव था। करीब 50 नावों में सवार होकर लोग मछलियां और बॉम्बे बत्तख का निर्यात करते थे। लेकिन उद्योग आने से नदियां तक प्रदूषित हो गई हैं मछलियां मर चुकी हैं और पानी विषैला हो गया है। कोलाक नदी का पानी तो एकदम काला हो चुका है। कहीं जहरीली कीचड़ है तो कही जहरीली नालियां। हालांकि राज्य का जल विभाग यहां क्लोरीन युक्त पानी मुहैया कराता है लेकिन वो ये लोग पीने के काम में नहीं प्रयोग कर सकते। खतरा इतना है कि इससे निपटने के लिए लोगों को चंदा इक्ट्ठा कर पानी का संयंत्र लगाना पड़ा है। जिससे 8 गावों के 50 हज़ार गावों की जरूरत पूरी की जाती है।
प्रदूषण से खेती भी संभव नहीं
प्रदूषण से खेती भी संभव नहीं
रिपोर्ट के मुताबिक वापी इलाके में जल और वायु प्रदूषण ने मिट्टी को बर्बाद कर दिया है। धान के खेत खत्म हो रहे हैं। हालांकि सरकारी अमला ये मानने से इनकार कर रहा है।
खबरज़ोन के सवाल
1. सवाल ये है कि अगर सच्चाई ये है तो क्या मोदी का विकास का फॉर्म्यूला गुजरात को भारी पड़ रहा है?
2. क्या महज उद्योगों की संख्या बढ़ाना ही विकास के मायने हैं?
3. क्या ऐसे विकास की कीमत चुका रहे स्थानीय लोगों को जीने का हक नहीं?
4. क्या ये उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं? और
5. अगर है तो इसका ज़िम्मेदार कौन है?
खबरज़ोन के सवाल
1. सवाल ये है कि अगर सच्चाई ये है तो क्या मोदी का विकास का फॉर्म्यूला गुजरात को भारी पड़ रहा है?
2. क्या महज उद्योगों की संख्या बढ़ाना ही विकास के मायने हैं?
3. क्या ऐसे विकास की कीमत चुका रहे स्थानीय लोगों को जीने का हक नहीं?
4. क्या ये उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं? और
5. अगर है तो इसका ज़िम्मेदार कौन है?
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