नई दिल्ली। लोकपाल बिल को लेकर एक बार फिर बहस शुरू हो गई है। एक तरफ़ अन्ना हज़ारे फिर अनशन पर बैठे हैं तो दूसरी तरफ़ केंद्र की यूपीए सर...
नई दिल्ली। लोकपाल बिल को लेकर एक बार फिर बहस
शुरू हो गई है। एक तरफ़ अन्ना हज़ारे फिर अनशन पर बैठे हैं तो दूसरी तरफ़ केंद्र
की यूपीए सरकार किसी तरह बिल को राज्यसभा में पास कराने के मूड में है। दिलचस्प
बात ये है कि सरकारी बिल अन्ना को मंज़ूर है फिर भी वो अनशन पर हैं। ये सवाल हो
सकता है कि वो क्यों अनशन पर हैं? लेकिन उससे बड़ा सवाल ये है कि जब
सरकारी लोकपाल बिल पर अन्ना राज़ी हैं तो उनके पुराने सहयोगी आम आदमी पार्टी के
लोगों को ये मंज़ूर क्यों नहीं है? इसके लिए ज़रूरी है जानना कि आख़िर मौजूदा
लोकपाल बिल में है क्या और क्यों अन्ना चाहते हैं कि अभी जो है पास हो जाये बाकी
बाद में संसोधन होता रहेगा।
1. सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति:
ये पहले पूरी तरह से सरकार के हाथों
में था लेकिन नए बिल में सरकार चयन समिति के सिफारिशों के आधार पर ही नियुक्ति कर
सकेगी जिसमें प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और भारत के मुख्य न्यायाधीश शामिल
होंगे। आप
की मांग है सीबीआई को लोकपाल के दायरे में लाया जाए और उसे पुलिस के अधिकार मिलें
2. लोकपास सदस्यों के लिए बननेवाली चयन
समिति में प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश, नेता प्रतिपक्ष, लोकसभा स्पीकर, और इन
सभी के कहने पर राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त प्रख्यात विधिवेत्ता शामिल होंगे। राजनीतिक लोगों पर AAP को ऐतराज़
3. लोकपाल में 8 सदस्य होंगे जिनमें से 4
न्यायिक क्षेत्र से और बाकियों में क़ानून, जांच-पड़ताल, वित्त, गुप्तचर,
भ्रष्टाचाररोधी विशेषज्ञों को शामिल किया जाएगा जिसमें अनूसूचित जाति और अनूसूचित
जनजाति के साथ-साथ महिलाओं को शामिल करना ज़रूरी होगा। ये वो मांग थी जो पूरी हुई है
4. सीबीआई वहीं तक लोकपाल के दायरे में
रहेगी जहां तक कि जांच एजेंसी लोकपाल से आये मामलों की जांच कर रही होगी। जितने
मामले लोकपाल सीबीआई को सौंपेगा उन सभी मामलों में सीबीआई सीधा लोकपाल को ही
रिपोर्ट करेगी जिसमें कोई भी बाहरी दखल नहीं रहेगा। जिस तरह से पहले हुआ कोई क़ानून मंत्री जांच में दखल नहीं
देगा
5. जो जांच अधिकारी लोकपाल के दिये
मामलों की जांच कर रहे होंगे उनका स्थानान्तरण सरकार तभी करेगी जब लोकपाल से इसकी
मंज़ूरी मिल जाएगी। इस
पर सरकार राज़ी नहीं है, राज्य सभा में इस पर चर्चा होनी है लेकिन एक बार 8
सदस्यों का लोकपाल बन जाएगा तो सरकार के लिए एकतरफ़ा स्थानान्तरण का फ़ैसला लेना
आसान नहीं होगा
6. सीबीआई को अधिकार होगा कि लोकपाल से
मंज़ूरी लेकर अपनी वकीलों की टीम बना सकती है पहले वकीलों की टीम बनाने के लिए सीबीआई को नौकरशाही
तंत्र से गुज़रना पड़ता था
7. सीबीआई डायरेक्टर के नीचे के
डायरेक्टर के अधीन एक अभियोजन निदेशालय होगा अभी क़ानूनी अधिकारी सीधे क़ानून मंत्रालय से आते हैं
8. सरकार उन सभी तरह के खर्चे मुहैया
कराएगी जो जांच के लिए सीबीआई को ज़रुरत होगी और इसकी ज़िम्मेदारी सीबीआई
डायरेक्टर की होगी। सीबीआई
डायरेक्टर के लिए ये प्रतिक्षित है जो उनके हाथों को और खोल सकता है
9. लोकपाल के पास एक जांच-पड़ताल विंग
होगा जो किसी शिकायत के मिलने पर तय करेगा कि उस शिकायत में पूछताछ की ज़रुरत है
या उसके तह में जाने के लिए किसी जांच एजेंसी को लगाने की ज़रुरत है
10. हालांकि सरकारी अधिकारियों के मामले में सरकार की सिफ़ारिश है
कि किसी जांच से पहले उनकी सुनवाई होनी चाहिए जो राज्य सभा में चर्चा में शामिल
होगा। वैसे अधिकतर लोग मानते हैं कि ये अनिवार्य न होकर विवेक पर आधारित होना
चाहिए।
11. एक और बिंदु जिस पर ऐतराज़ है कि किसी सरकारी अधिकारी के
ख़िलाफ़ कार्रवाई करने से पहले लोकपाल को सरकार से मंज़ूरी लेनी होगी। वैसे सरकार
इतने पर राज़ी है कि तीन लोकपाल का बेंच ऐसे मामलों में जांच रिपोर्ट पर आगे बढ़ने
से पहले संबंधित अधिकारी और उसके वरिष्ठ से राय मशविरा करेगी।
12. प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में रखा गया कुछ मामलों को
छोड़कर जिसमें लोकआदेश, अंतरिक्ष, रक्षा मामले वगैरह शामिल हैं लेकिन प्रधानमंत्री
कार्यालय लोकपाल के दायरे में रहेगा।
13. लोकपाल को कम से कम 100 सांसदों की याचिका पर राष्ट्रपति
द्वारा सर्वोच्च न्यायालय से जांच के बाद ही हटाया जा सकता है।
14. लोकपाल क़ानून सभी राज्यों पर लागू होगा और वहां एक साल के
भीतर इसके तहत लोकायुक्तों की नियुक्ति करनी होगी। कई राज्यों में लोकायुक्त नहीं
हैं।
कुल मिलाकर जानकार इस लोकपाल बिल को ठीक मानते हैं और मानते हैं कि
इसमें 80% तक सरकार का दखल
नहीं है। सिर्फ नौकरशाहों को बख़्शने और लोकपाल को पुलिस एजेंसी ताक़त न देने को
ऐतराज़ है तो जानकार मानते हैं कि इसे बाद में भी पूरा किया जा सकता है।