Full text of Preet Bharara statement on Devyano Khobragade issue in Hindi
देवयानी मामले में प्रीत भरारा पर आरोप है कि उन्हीं के कहने पर देवयानी खोबरागड़े को गिरफ़्तार किया गया। और इस मामले को भारतीय विदेश विभाग एक साज़िश के तौर पर देखता है। ऐसे में प्रीत भरारा ने बयान जारी कर अपनी तरफ़ से पूरे मामले को साफ़ करने की कोशिश की है। पढ़िए क्या लिखा है प्रीत भरारा ने-
देवयानी खोबरागड़े पर लगे आरोपों को लेकर मीडिया ग़लत सूचनाएं दे रहा है। ये ज़रूरी है कि इन सूचनाओं को सही किया जाए क्योंकि इसके ज़रिए लोगों को बरग़लाया जा रहा है। हालांकि इस मामले में एक वकील के तौर पर मेरा बेहद सीमित रोल है जो कई तरह से इस मामले का ब्यौरा देने से रोकता है जितना मैं बता सकता हूं। मैं सुनिश्चित कर सकता हूं कि अब तक मेरा सार्वजनिक रिकॉर्ड साफ रहा है।
सबसे पहले, शिकायत के अनुसार खोबरागड़े पर आरोप है कि उन्होंने राजनयिकों और कांसुली अधिकारियों के घरेलू नौकर के शोषण से बचानेवाले अमेरिकी क़ानून का उल्लंघन करने का प्रयास किया है। उन्होंने सिर्फ क़ानून का उल्लंघन नहीं किया बल्कि वो और उनके पति ने नौकरानी के जाली दस्तावेज़ों को प्रमाणित किया है और अमेरिकी सरकारी अधिकारियों से झूठ बोलने के अपराध में भी लिप्त रहीं। इस तरह से उन पर आरोप है कि उन्होंने सिर्फ क़ानून नहीं तोड़ा बल्कि जानबूझकर जाली दस्तावेज़ तैयार किये और अमेरिकी सरकार से झूठ बोला।
कोई भी आश्चर्य करेगा अगर एक सरकार अपने यहां किसी विदेशी को लाने के लिए फ़र्ज़ी दस्तावेज़ बनानेवाले के ख़िलाफ़ कार्रवाई न करे। आश्चर्य तब और होगा जब ये पता लगे कि ऐसा इसलिये किया गया क्योंकि क़ानून के ख़िलाफ़ जाकर एक घरेलू नौकर के साथ दुर्व्यवहार किया जाएगा और उस पर सरकार कार्रवाई न करे। और आश्चर्य तब होगा जब उस भारतीय के ख़िलाफ़ कार्रवाई होती है तो इतना हल्ला हंगामा होता है जबकि पीड़ित और उसके पति को लेकर कोई आवाज़ नहीं उठती।
दूसरा, जैसा कि खोबरेगड़े का कथित व्यवहार साफ करता है कि इसमें कोई प्रशंसनीय दावा नहीं है कि ये मामला किसी भी तरह से अप्रत्याशित या अन्यायपूर्ण है। जबकि देखा जाए तो क़ानून स्टेट डिपार्टमेंट की वेबसाइट पर साफ़ तौर से लिखा है। आगे ये भी बता दें कि अमेरिका में और भी मामले हैं जिसमें दूसरे देश और कुछ में भारत भी है जहां नौकरों से राजनयिकों या कांसुलरों द्वारा दुर्व्यवहार करने के मामले में उन्हें आपराधिक तौर पर आरोपित किया गया है और कुछ मामलों में सिविल सूट्स भी हैं। वास्तव में भारत सरकार ख़ुद इन मामलों के बारे में जानती है कि उनके राजनयिकों और कांसुलर अधिकारियों पर इस क़ानून के उल्लंघन का रिस्क है। फिर ये सवाल पूछा जा सकता है कि क्या अमेरिकी वकील इसे दूसरे नज़रिये से देखे? क़ानून और पीड़ित जो एक भारतीय ही है के मानवाधिकार को नज़रअंदाज़ कर दे? या ये राजनयिकों और कांसुली अधिकारियों और उनके सरकारों की ज़िम्मेदारी है कि वो देखें कि क़ानून का उल्लंघन न हो?
तीसरा, खोबरागड़े, राजनीतिक, आर्थिक, वाणिज्यिक और महिलाओं के मामलों के लिए उप महा कांसुल, पर आरोप है कि उन्होंने पीड़ित को कई मामलों में ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से रखा गया जिसमें उसे न्यूनतम मज़दूरी से कम पर रखना शामिल है बगैर ये सोचे कि उस पर अपने बच्चे को पालने की ज़िम्मेदारी है, घर की ज़िम्मेदारी है। पीड़ित ने ये भी आरोप लगाया है कि उससे 40 घंटे प्रति हफ़्ते से ज़्यादा काम लिया जाता था जो वीज़ा आवेदन में दिये अधिकतम काम करने की समय सीमा से ज़्यादा है। शिकायत के मुताबिक खोबरागड़े ने एक दूसरा कॉन्ट्रैक्ट तैयार किया जिसे अमेरिकी सरकार को नहीं दिखाया गया, इसमें पीड़ित को न्यूनतम मज़दूरी से कम पैसा देने की बात है, पीड़ित के साथ दुर्व्यवहार न करने की ज़रूरी बात को निकाल दिया, और साथ ही उस बात को भी निकाल दिया जिसमें खोबरागड़े अमेरिका के सभी क़ानूनों के तहत आती हैं। ये तो महज़ चंद तथ्य हैं और भी तथ्य हैं जो पीड़ित के साथ हुए व्यवहार को दिखाते हैं और जिसकी वजह से स्टेट डिपार्टमेंट को क़ानून कार्रवाई करने पर मजबूर किया।
चौथा खोबरागड़े का स्टेट डिपार्टमेंट के द्वारा अरेस्ट किया जाना अभियोजन के दफ़्तर से ताल्लुक नहीं रखता लिहाज़ा ये सवाल दूसरी एजेंसियों से पूछना बेहतर होगा। मैं इन मुद्दों पर उन्ही तथ्यों के आधार पर बोलूंगा जिसे मैं समझता हूं। खोबरागड़े को उसी तरह का शिष्टाचार मिला जैसे दूसरे प्रतिवादियों को जिनमें से अधिकतर अमेरिकन हैं। उन्हें उनके बच्चों के सामने गिरफ़्तार नहीं किया गया जैसा कि मीडिया में दिखाय जा रहा है। एजेंट्स ने उन्हें जितना हो सका सबसे नरम तरीका अपनाकर गिरफ़्तार किया और बाकियों की तरह ही उन्हें भी उस वक़्त हथकड़ी नहीं लगाई गई। जबकि गिरफ़्तार करनेवाले अधिकारी ने उनका फोन तक सीज़ नहीं किया जैसा कि वे सामान्य तौर पर करते हैं। इसके विपरीत उन्होंने, उन्हें कई कॉल्स करने की अनुमति दी जिसमें उनके बच्चों का कुशल-क्षेम पूछना भी शामिल है। ये सब दो घंटे तक चला। क्योंकि बाहर काफ़ी ठंड थी लिहाज़ा एजेंट्स ने उन्हें ये कॉल्स उनकी कार से करने दिये और यहां तक कि उनके लिए कॉफ़ी भी खरीदकर लाई गई और उन्हें खाने के लिए भी पूछा गया। ये सही है कि जब उन्हें यूएस मार्शल्स की कस्टडी में लाया गया तो एक निजी कमरे में महिला मार्शल द्वारा उनकी तलाशी ली गई, लेकिन ये सामान्य प्रक्रिया है जिससे हर प्रतिवादी को चाहे वो अमीर हो या ग़रीब, अमेरिकन हो या ग़ैरअमेरिकन गुज़रना ही पड़ता है ताकि ये देखा जा सके कि कोई क़ैदी अपने साथ ख़ुद को या दूसरों नुकसान पहुंचाने जैसी कोई चीज़ तो नहीं ले जा रहा।
पांचवीं बात। जैसा कि बताया जा रहा है कि पीड़ित के परिवार को अमेरिका बुलाया गया। और ये भी बताया जा रहा है कि पीड़ित को ख़ामोश करने के लिए भारत में उसके ख़िलाफ़ क़ानूनी प्रक्रिया शुरू की गई है और उसे भारत वापस लाने के लिए दबाव डाला जा रहा है। पीड़ित का परिवार इस मामले में कई तरह से सामना कर रहा है। ये अनुमान लगाना कि क्यों पीड़ित के परिवार को यहां लाया गया ग़लत है। इस पर ज़रूर फोकस किया जाना चाहिए कि क्यों परिवार को खाली कराना पड़ा और क्या कार्रवाई की गई यहां या भारत में। ये दफ़्तर और जस्टिस डिपार्टमेंट पीड़ितों, गवाहों और उनके परिवारों की रक्षा के लिए ज़िम्मेदार हैं जब तक कि केस चल रहा है।
और अंत में इस मामले में इस दफ़्तर की एकमात्र प्रेरणा है, जैसा कि हर मामले में होती है, कि क़ानून का राज स्थापित हो, पीड़ित को बचाया जाए और क़ानून तोड़नेवाले की जवाबदेही सुनिश्चित हो – इससे कोई मतलब नहीं है कि उसका सामाजिक स्तर क्या है और वो कितना ताक़तवर है, या कितना अमीर है या संपर्कवाला है।