नई दिल्ली। शुक्रवार को सरकार ने धारा 377 पर दिये सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर की है। 11 दिसम्बर को दिल्ली हाईकोर्...
नई दिल्ली। शुक्रवार को सरकार ने धारा 377 पर दिये सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर की है। 11 दिसम्बर को दिल्ली हाईकोर्ट को किनारे करते हुए कोर्ट ने अपने फ़ैसले में धारा 377 के तहत गे सेक्स को अपराध बताया था और इसके लिए पहले से चली आ रही उम्र क़ैद की सज़ा को बहाल रखा था। अदालत ने कहा था कि एक ही सेक्स में रज़ामंदी से किये जानेवाला सेक्स सही नहीं है।
अटार्नी जनरल जीई वाहनवती ने केंद्र की ओर से याचिक दायर करते हुए अदालत से याचिका पर निर्णय लेने से खुली अदालत में पहले मौखिक बहस करने की गुज़ारिश की है। पुनर्विचार याचिका पर पारम्परिक तौर से चेंबर में ही चर्चा होती है।
वकील देवदत्त कामत के ज़रिए अदालत में दाखिल केंद्र की याचिका में 76 आधार पेश किये गये हैं और कहा गया है जस्टिस जीएस सिंघवी और जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय के द्वारा दिया गया फ़ैसला रिकॉर्ड में दिखाई दे रही ग़लती से ग्रसित है और संविधान की धारा 14, 15 और 21 में दिये मूलभूत अधिकारों को लेकर दिये इस अदालत के क़ानूनों के स्थापित सिंद्धांतों के विपरीत है।
केंद्रीय क़ानून मंत्री कपिल सिब्बल ने ट्वीट करते हुए कहा कि, "सरकार ने धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट में आज पुनर्विचार याचिका डाली। उम्मीद करते हैं कि व्यक्तिगत पसंद का अधिकार सुरक्षित रहेगा।"
सुप्रीम कोर्ट का हालिया फ़ैसला उन लाखों होमोसेक्सुअल लोगों के लिए एक झटका था जिन्हें हाईकोर्ट के फ़ैसले से राहत मिली थी और इनमें से कई साथ रहने भी लगे थे लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद ये अपराध की श्रेणी में आ गया और इन सभी पर जेल जाने की मुसीबत आन पड़ी।
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के 2009 के फ़ैसले को पलटले हुए 150 साल पुराने धारा 377 के क़ानून के बहाल किया और कहा कि गे सेक्स एक अपराध है।
वहीं सरकार ने धारा 377 पर दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले का समर्थन करते हुए कहा है कि आईपीसी में यह विवादास्पद प्रावधान ब्रिटिश औपनिवेशवाद का नतीजा है। गे राइट ऐक्टिविस्ट्स ने केंद्र के इस कदम का स्वागत किया है।