पटना। चार राज्यों के चुनाव में बुरी तरह हताश कांग्रेस अब आम चुनाव में सोच समझ का उतरना चाह रही है । इसी क्रम में बिहार में अलग थलग प...
पटना। चार राज्यों के चुनाव में बुरी तरह हताश कांग्रेस अब आम चुनाव में सोच समझ का उतरना चाह रही है। इसी क्रम में बिहार में अलग थलग पड़ी कांग्रेस अब राजद को इशारा देना शुरू कर चुकी है। अब यहाँ राजनीतिक हलकों में दोनों की दोस्ती के भरपूर कयास लगाये जा रहे हैं। परन्तु जो खबरें आ रही हैं उसमे मामला सीट के दावों पर अटक सकता है। क्यूंकि कांग्रेस के दिग्गज जिन सीटों पर दावा कर रहे हैं वहां राजद का मत प्रतिशत कांग्रेस से बहुत ज्यादा रहा है। अब कांग्रेस गठबंधन के बहाने अपने वरिष्ठ नेताओं को वहां से जिता कर बिहार में अपनी छवि ठीक करने की कोशिश करेगी। ऐसे में पहला नाम आता है, कांग्रेस में राजद गठबंधन के सबसे बड़े समर्थक शकील अहमद का जो मधुबनी से चुनाव लड़ना चाहते हैं। जबकि इस सीट पर राजद को करीब 154000 वोट मिले थे जबकि कांग्रेस को 112000 वोट मिले। अब देखना ये है कि क्या शकील अहमद राजद से अपनी पुरानी दोस्ती का हवाला दे कर ये सीट अपने नाम करवा सकते हैं या नहीं?
अब नाम आता है कांग्रेस के अन्दर राजद के दुसरे बड़े समर्थक का, ये हैं पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सदानंद सिंह। ये महाशय शाहनवाज़ हुसैन के खिलाफ भागलपुर से चुनाव लड़ के संसद जाने की तमन्ना रखते हैं। लेकिन पिछले चुनाव में इन्हें कांग्रेस के टिकट पर मात्र 52000 वोट मिले। जबकि राजद के टिकट पर चुनाव मैदान में थे शकुनी चौधरी, जो वहां की राजनीति में खासा वर्चस्व रखते हैं। ये एक जाति विशेष के वोट को पूरे राज्य में प्रभावित करते हैं और इन्हें करीब 173000 वोट मिले थे। अब देखना ये है कि राजद अपने इस बड़े नेता को हटाने का तालमेल कांग्रेस से कर पाएगी या नहीं। क्यूंकि शकुनी चौधरी के टिकट काटने का मतलब है कि बिहार की राजनीति में खासा वर्चस्व रखने वाली जाती विशेष को नाराज़ करना। शायद इस तरह के रिस्क लेने की स्थिति में राजद अभी नहीं है, पर राजनीति में कुछ भी संभव है।
इस तरह से कई सीट हैं जिस पर कांग्रेस के सभी दिग्गज गिद्ध की दृष्टि लगाये बैठे हैं। इसी क्रम में अगला नंबर आता है प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक चौधरी का जो जमुई से चुनाव लड़ना चाहते हैं। पिछली बार कांग्रेस को इस सीट पर करीब 71000 वोट पड़े थे जबकि राजद को करीब 150000 वोट मिले थे। जब कांग्रेस के दिग्गज नेता दावा कर रहे हैं तो उनके परिजन भी कहाँ पीछे रहे वाले थे। पूर्व मुख्यमंत्री सत्येन्द्र नारायण सिंह के परिजन भी कहाँ पीछे रहने वाले थे। उन्होंने भी औरंगाबाद से दावा ठोंक दिया। जबकि इस सीट पर तो कांग्रेस की हालत और भी पतली है। इस सीट पर तो कांग्रेस को मात्र 52000 वोट मिले थे और राजद को करीब 172000 वोट। इस तरह से बिहार में कई ऐसे सीट हैं जो दोनों के तालमेल के दौरान खासा मुद्दा बनाने वाली है। साथ ही जब लोजपा के साथ तालमेल की बात आएगी तब मामला और भी उलझने के संभावना है। लेकिन तीनों पार्टी के हालत के हिसाब से गठबंधन इनकी मजबूरी है और इसके अलावा इनके पास कोई चारा भी नहीं है।