नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आज अपने एक अहम फैसले में समलैंगिकता को भारत में अपराध की श्रेणी में रखा है। जस्टिस जी एस सिंघवी और जस्टिस एस...
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आज अपने एक अहम फैसले में समलैंगिकता को भारत में अपराध की श्रेणी में रखा है। जस्टिस जी एस सिंघवी और जस्टिस एस जे मुखोपाध्याय की खंडपीठ ने सामाजिक और धार्मिक संगठनों की याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया। हाई कोर्ट ने इस तरह की गतिविधियों को अपराध के दायरे से बाहर रखने की व्यवस्था दी थी।
इस मामले पर 15 फरवरी 2012 से नियमित सुनवाई चल रही थी और पिछले साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि फैसला बाद में सुनाया जाएगा। इस मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केंद्र सरकार को भी फटकार लगाई थी। फिर अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि सरकार समलैंगिकों के मूल-भूत अधिकारों का सम्मान करती है। जबकि इससे पहले गृह मंत्रालय समलैंगिकता के विरोध में था, जबकि स्वास्थ्य मंत्रालय इसके हक में। लॉ कमीशन ने भी कई बार सरकार से समलैंगिकता पर कानून बनाने की सिफारिश की थी और कोर्ट ने भी इस मसले पर संसद में चर्चा नहीं होने पर चिंता व्यक्त की थी।
इस मामले पर 15 फरवरी 2012 से नियमित सुनवाई चल रही थी और पिछले साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि फैसला बाद में सुनाया जाएगा। इस मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केंद्र सरकार को भी फटकार लगाई थी। फिर अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि सरकार समलैंगिकों के मूल-भूत अधिकारों का सम्मान करती है। जबकि इससे पहले गृह मंत्रालय समलैंगिकता के विरोध में था, जबकि स्वास्थ्य मंत्रालय इसके हक में। लॉ कमीशन ने भी कई बार सरकार से समलैंगिकता पर कानून बनाने की सिफारिश की थी और कोर्ट ने भी इस मसले पर संसद में चर्चा नहीं होने पर चिंता व्यक्त की थी।
दिल्ली हाईकोर्ट ने 2 जुलाई, 2009 को भारतीय दंड संहिता की धारा 377 में प्रदत्त समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध के दायरे से मुक्त करते हुए व्यवस्था दी थी। इसके अनुसार अगर एकांत में दो व्यस्कों के बीच सहमति से स्थापित यौन संबंध अपराध नहीं होगा। परन्तु धारा 377 तहत समलैंगिक यौन संबंध दंडनीय अपराध है, जिसके लिए उम्र कैद तक की सजा हो सकती है। साथ ही कई हिंदू और मुस्लिम संगठनों ने फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। इन संगठनों की दलील