कुशीनगर। मुख्यमंत्री से गन्ना मिल मालिको पर लगाम कसने की उम्मीद लिए किसान जैसे निराश हो गए |वजह बहुत सरल अखिलेश सिंह का हल्का बया...
कुशीनगर। मुख्यमंत्री से गन्ना मिल मालिको पर लगाम कसने की उम्मीद लिए किसान जैसे निराश हो गए |वजह बहुत सरल अखिलेश सिंह का हल्का बयान। कुशीनगर का किसान गन्ना कहां बेचे इस बात से वो बहुत परेशान है। वजह ये कि आसपास के सारे चीनी मिल बंद हैं और जो मिलें चालू हैं, वहां भुगतान एक बड़ी समस्या है।
अखिलेश ने भी नहीं सुनी फ़रियाद
गन्ना किसानों को अखिलेश प्रसाद यादव से काफ़ी उम्मीदें थीं कि वो कुशीनगर आयेंगे तो सिर्फ मैत्रेय परियोजना का बखान ही नहीं करेंगे बल्कि किसानों के दर्द को भी सुनेंगे और उनको लेकर कोई बड़ा ऐलान करेंगे लेकिन किसानों को अखिलेश की सभा से बैरंग ही वापस लौटना पड़ा।
मिल मालिकों की मनमानी
ये एक तरह का घोटाला है। सरकार ने गन्ने को लेकर न्यूनतम मूल्य तय कर रखा है लेकिन मिल मालिक उसकी मुख़ालफ़त कर रहे हैं। सरकार ने गन्ने का खरीद मूल्य 210 रु/क्विंटल रखा है, जबकि मिल इसे 40 रुपये कम में ही खरीदते हैं। ये किसानों के लिए बड़ा नुकसान है जिस पर राज्य सरकार का ध्यान नहीं जा रहा। हद तो ये है कि चीनी मिल मालिक ये मनमानी खुले आम करते हैं और गन्ना खरीद की जो पर्चियां किसानों को जारी की जाती हैं उस पर साफ़ तौर पर 170रु/ क्विंटल की दर लिखी होती है।
किसानों की कोई नहीं सुनता
किसानों के लिए परेशानी का सबब ये है कि उनकी शिकायत की कहीं सुनवाई नहीं होती। मिल मालिक किसानों की सुनते नहीं, विभाग पहले से उदासीन है और इन सब के बीच में किसान अपना गन्ना औने पौने दाम पर बेचने को मजबूर है। ये भी नहीं है कि मनमाने रेट से ही उन्हें तुरंत भुगतान होता है किसानों को पर्चियां बांट दी जाती हैं और भुगतान के लिए महीनों इंतज़ार कराया जाता है। अगर किसान क्रेसर पर गन्ना बेचता है तो उसे 130-140 रुपये प्रति क्विंटल में ही संतोष करना पड़ता है जिसमें किसान सिर्फ अपनी लागत ही निकाल पाता है।
अर्श से फर्श पर आया चीनी उद्योग
एक वक्त था जब देवरिया और कुशीनगर हिंदुस्तान के नक्शे पर सबसे ज़्यादा चीनी देनेवाले इलाके के तौर पर जाने जाते थे लेकिन सरकारी बेरूखी की वजह से एक-एक कर के चीनी मिलें बंद होती गईं और किसानों को अच्छा मुनाफ़ा देनेवाली गन्ने की फ़सल भी अब नाउम्मीद करने लगी है। जो गन्ना एक वक़्त में यूपी के राजस्व का पेट भरा करती थी आज उसी से जुड़े किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं।