Arvind Kejriwal, convenor of Aam Aadmi Party, waves to supporters from his party HQ after winning against long-serving chief minister She...
Arvind Kejriwal, convenor of Aam Aadmi Party, waves to supporters from his party HQ after winning against long-serving chief minister Sheila Dikshit in New Delhi. |
नई दिल्ली। न समर्थन देंगे, न समर्थन
लेंगे लेकिन अच्छे नेताओं का साथ ज़रूर लेंगे। ये एक तरह से आम आदमी पार्टी के
संयोजक अरविंद केजरीवाल का कहना है जो अपने सहयोगी प्रशांत भूषण की बीजेपी को
मुद्दो पर आधारित समर्थन देने की बात को नकार चुके हैं लेकिन वो कहते हैं कि अगर
अच्छे लोग पार्टियां छोड़ के आएं तो उनका स्वागत है।
ये केजरीवाल का सरकार बनाने का
फॉर्मूला है। वो कहने को जोड़-तोड़ नहीं कर रहे लेकिन बहुमत के आंकड़े से 8 सीट
पीछे केजरीवाल ऐसे लोगों को बुला रहे हैं जो अच्छे हैं और आम आदमी पार्टी से
जुड़ने की हसरत रखते हैं तो वो अपनी पार्टी को टाटा बाय बाय कहें और केजरीवाल
उन्हें अपना लेंगे।
अब ये अलग बात है कि ऐसे लोगों को
अच्छा होने का तमगा कौन देगा। क्या वो ख़ुद तय करेंगे कि वो अच्छे हैं और अपनी पार्टी
छोड़ आम आदमी पार्टी में शामिल हो जाएंगे ताकि वो सरकार में शामिल हो सकें? या अरविंद केजरीवाल ने उनके अच्छे होने का कोई पैमाना
तय किया है जिससे वो उनकी ईमानदारी को नाप सकते हैं?
अरविंद केजरीवाल का कहना है कि, "यह लड़ाई हमारी नहीं है, जनता की है। आप बहुत छोटी है। हम सभी अच्छे लोगों को न्योता देते हैं। या
तो वे लोग अपने यहां विरोध करें या हमारे यहां आ जाएं। हम हटकर उन्हें जगह देने के
लिए तैयार हैं।"
दिल्ली
की सियासत में बीजेपी और आप एक महीन लकीर के इधर-उधर खड़ी हैं और दोनों के पास
मौका है कि वो जोड़-तोड़ कर के सरकार बना ले। लेकिन बीजेपी के सामने लोकसभा चुनाव
है और वो दिल्ली की जनता का मूड देख चुकी है जो ईमानदारी को सलाम करती है और साफ़
सुथरी सरकार चाहती है, ऐसे में लोकसभा चुनावों के लिए रिस्क लेना सही नहीं है। ऊधर
आम आदमी पार्टी के साथ दिक्कत ये है कि वो भी जोड़-तोड़ कर सकती है या गठजोड़ कर
सकती है लेकिन ऐसा वो इसलिए नहीं करती क्योंकि ये उसकी विचारधारा पर सवाल होगा और
इससे पार्टी के अस्तित्व पर ही ख़तरा पैदा हो जाता है। लिहाज़ा कान अब दूसरी तरफ़
से पकड़ा जा रहा है।